Wednesday, March 5, 2008

बेलौस, बेफिक्र मौज और फ़िर एक यू टर्न


क्या हम सब अपनी इस ज़िंदगी की तमाम मस्ती और सुकून के बावजूद हमेशा एक parallel world में भी जीना चाहते हैं? क्या इसीलिए हमने 'privacy' और 'निजी ज़िंदगी' जैसे लफ्ज़ ईजाद कर लिए हैं? घर के बाहर की रोज़मर्रा की अपनी ज़िंदगी - जिसे हमने 'social life' का नाम दे रखा है - से क्या हम इतना चिढ़ते हैं कि एक अलग दुनिया की ज़रूरत महसूस करें?
ये लंबे-लंबे सवाल कितने ज़रूरी हैं, पता नहीं, लेकिन मुझे आज ये बड़े खास लग रहे हैं. 
मैंने अभी-अभी एक फ़िल्म देखी जिसका नाम है 'The Beach'. ये फ़िल्म tourist destinations मे बढ़ती भीड़ और इस कारण किसी untouched destination की तलाश के बहाने हमारे उन basics को उधेड़ के रख देती है, जिन्हें हम सिर्फ़ 'privacy' में ही बाहर आने देना चाहते हैं... फिलहाल मैं इसके अलावा कुछ और सोच ही नहीं पा रहा हूँ. सच में कमाल की फिल्म है ये.