Saturday, October 23, 2010

...!

पिता, जो माँ की तरह किसी छोटी-मोटी बात पर गले नहीं लगाते,
लेकिन कनखियों से देख कर सब समझ जाते हैं.

पिता, जो कभी कमज़ोर नहीं पड़ते,
फिर चाहे हालात कैसे भी हों.
वो जानते हैं, कितना अहम है उनका होना, सबके लिए,
बस इसीलिए, डटे रहते हैं, हमेशा.

पिता, जो जानते हैं, कितनी मुश्किल है दुनियादारी,
बस इसीलिए, ज़रा सख्त बने रहते हैं, हमेशा.

पिता, जो सबके सुकून के लिए खर्च करते रहते हैं खुद को, सुबह से शाम, पूरी ज़िन्दगी,
शायद इस उम्मीद में कि एक दिन वो सब खड़े होंगे अपने पैरों पर, उन्हीं की तरह.

Saturday, July 31, 2010

Poor Fellows

What it takes on this planet, 
to make love to each other in peace. 
Everyone pries under your sheets, 
everyone interferes with your loving. 
They say terrible things about a man and a woman, 
who after much milling about, 
all sorts of compunctions, 
do something unique, 
they both lie with each other in one bed. 
I ask myself whether frogs are so furtive, 
or sneeze as they please. 
Whether they whisper to each other in swamps about illegitimate frogs, 
or the joys of amphibious living. 
I ask myself if birds single out enemy birds, 
or bulls gossip with bullocks before they go out in public with cows. 
Even the roads have eyes and the parks their police. 
Hotels spy on their guests, 
windows name names, 
canons and squadrons debark on missions to liquidate love. 
All those ears and those jaws working incessantly, 
till a man and his girl 
have to raise their climax, 
full tilt, 
on a bicycle.


By
PABLO NERUDA

Wednesday, July 28, 2010

Turn The Searchlight Within

Everything in my life is a reflection of who I am in this moment. I recognize my own influence on my difficulties, disappointment, and lack. I no longer look outside myself for causes and solutions, but turn the searchlight within. When I do this, I banish my helplessness and step into the power of my own.


Courtesy- The Deeper Secret 
by Annemarie Postma

Saturday, July 17, 2010

Love Sex Dhokha Murder


इस गाने का छिछोरापन मुझे इतना पसंद है कि मैं बस इसे यहाँ दोहराना चाहता हूँ, बेवजह लिख कर ही सही, यू ट्यूब लिंक देकर ही सही, पर दोहराना चाहता हूँ. 

तुझे गोली मारूंगा....
तेरी जान बचाऊंगा...
तुझे गोद सुलाऊंगा...
तेरी नींद उड़ाऊँगा...
तुझे गोली मारूं, जान बचाऊँ, गोद सुलाऊँ, नींद उडाऊं
सांस ये मेरी भाप है बेबी गरम अगन का झोंका
काट के रख दूंगा गर तूने जुड़ने से रोका...
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखा
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखातस्वीर उतारूंगा, मेले मे दिखाऊंगा
जो देखेगा उसकी अँखियाँ नुचवाऊंगा
तस्वीर उतारूं, मेले मे दिखाऊं, जो देखे उसकी अंख नुचवाऊं
हवस की तरकारी मे डाला जलन-भुनन का छौका
काट के रख दूंगा गर तूने जुड़ने से रोका...
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखा डार्लिंग
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखा
तुझे गोली मारूंगा...
तेरी जान बचाऊंगा...
तुझे गोली मारूं, जान बचाऊँ, गोद सुलाऊँ, नींद उडाऊं
सांस ये मेरी भाप है बेबी गरम अगन का झोंका
काट के रख दूंगा जो तूने जुड़ने से रोका...
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखा
लव सेक्स और धोखा डार्लिंग - लव सेक्स और धोखा



Friday, July 16, 2010

कमबख्त रेलवे का e-ticket

मैं जल्दी-जल्दी स्टेशन की सीढियां चढ़ रहा हूँ...हडबडाया हुआ हूँ...पीठ पर लदा बैग अचानक बहुत भारी लगने लगा है... 10 मिनट मे ट्रेन जाने वाली है और मुझे अभी-अभी बताया गया है कि मेरा e-ticket confirm नहीं हुआ है इसलिए नियम के मुताबिक cancel हो गया है... अब मुझे मजबूरन general ticket लेना पड़ेगा और फिर TC को fine और रिश्वत दोनों देना पड़ेगा, ताकि मुझे एक passenger ही माना जाए, बिना टिकट वाला नहीं...
इस वक्त मैं बहुत शिद्दत से IRCTC के head office मे एक bomb plant करना चाहता हूँ...
तो जल्दी-जल्दी general ticket खरीदता हूँ और उसे ले के platform  पर खड़े TC के पास जाता हूँ, उसे अपने e-ticket का printout दिखा के सारा हाल बताना चाहता हूँ, लेकिन मैं कुछ बोल पाऊँ इससे पहले ही वो मोटी तोंद वाला TC अपना एक हाँथ थोडा ऊपर उठाता है और डमरू बजाने वाले अंदाज़ मे हिलाते हुए कहता है...
''इधर AC मे कोई berth नहीं है, वहाँ sleeper मे जा के देखिये''
यानि अब मुझे पूरी रात sleeper coach की उमस मे सफ़र करना होगा, उस पर तुर्रा ये कि अब तक मेरे पास कोई berth भी नहीं है. एक बुरे सफ़र की इससे अच्छी शुरुआत और क्या हो सकती है. पता नहीं लोग शादी क्यों करते हैं (इस train से मैं अपने cousin की शादी मे जा रहा हूँ.)
खैर मैं हारकर वापस मुड़ता हूँ और मन ही मन उस TC की सातों पुश्तों को गरियाता हूँ, फिर बेवजह ममता बनर्जी और पूरे देश के railway system को कोसता हूँ (हम media वाले दूसरो के काम मे नुक्स निकालने और उन्हें कोसने मे माहिर होते हैं)
अब मैं sleeper coach की तरफ बढ़ रहा हूँ, मेरा mood off हो चुका है, मेरी शर्ट करीब-करीब पूरी भीग चुकी है, और मेरा बेचारा रूमाल इस कदर गीला हो चुका है, कि निचोड़ा जा सकता है. मुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है, जबकि इस वक़्त शाम का सात बजा हुआ है और हलकी ठंडी हवा चल रही है.
मैं sleeper के TC को ढूँढ रहा हूँ, लेकिन वो न जाने कहाँ मर गया है. मेरी हालत इस वक्त काफी खराब है, लेकिन मुझे खुद के बजाय इसके TC पर तरस आ रहा है. सोच रहा हूँ कि वो बेचारा कुछ हरी पत्तियाँ कमाने के लिए किसी बकरे की तलाश मे कही इधर-उधर गया होगा, जबकि मैं यहाँ कितने भी पैसे दे के एक side lower berth (मुझे इसके अलावा कोई और berth पसंद नहीं) के लिए हलाल होने को तैयार खडा हूँ.
Time देखता हूँ, 15 मिनट बीत चुके है लेकिन ट्रेन अब भी चुपचाप खड़ी है. यानी पहले स्टेशन से ही लेट होना शुरू. मैं फिर से ममता बनर्जी और railway system को कोसना चाहता हूँ, लेकिन सामने से एक खूबसूरत लड़की अपना भारी सा बैग लिए चली आ रही है. लेकिन वो मेरी तरफ देखती भी नहीं है (हे भगवान्, ऐसा कैसे हो सकता है आखिर!) और बगल से निकल कर आगे बढ़ जाती है. शायद उसका reservation AC coach मे है. उसकी हलकी सी खुशबू आई, अच्छी थी, कुछ जानी-पहचानी सी (शायद हमारा deo same होगा... उफ़ मैं इतने अंदाजे क्यों लगाता हूँ)  मैं मुड़कर उसे एक नज़र देखता हूँ, उसकी T-shirt पर पीछे लिखा हुआ है... better luck next time!
हद हो गई यार, एक पल के लिए तो मन किया कि उसके पास जाऊं और कहूं कि इस e-ticket की मेहरबानी ना होती तो शायद मैं उसके साथ एक ही coach मे बैठा होता और फिर बताता कि better luck किसे कहते हैं.
 खैर... उसे भूलकर मैं general ticket के साथ पूरी बेशर्मी से sleeper coach मे चढ़ता हूँ, खाली पड़ी एक side lower berth देखता हूँ, उसके सामने अपना बैग पटकता हूँ और berth पर आराम से बैठ जाता हूँ, फिर बैग के pocket से earpiece निकाल कर अपने कानो मे लगा लेता हूँ और एक FM पर आ कर रूक जाता हूँ,
रांझा रांझा कर गई वे मैं...
पांच-छः मिनट के लिए मैं सब भूल जाता हूँ. गाना ख़त्म होते ही कोई जोकर RJ अपनी बकवास शुरू कर देती है. मैं earpiece निकाल कर रख देता हूँ. इन पांच-छः मिनटों मे मुझे जो राहत मिली उसके लिए मैं रहमान, गुलज़ार, अनुराधा श्रीराम और रेखा भारद्वाज को गले लगाना चाहता हूँ.
Train चल चुकी है (15 मिनट से ज्यादा लेट ), खिड़की से आने वाली हवा बहुत सुकून भरी है. मैं आराम से बैठा ज़रूर हूँ लेकिन अपने चारो तरफ बैठे लोगो को देख के सोच रहा हूँ कि अभी कोई आकर ticket के बदले इस berth पर अपना हक़ जताएगा और मुझे मजबूरन उठना पड़ेगा. लेकिन फिर सोचता हूँ कि ठीक है यार, इतना परेशान क्या होना, देखा जायेगा.
तो दो station निकल चुके है, train चले हुए तकरीबन डेढ़ घंटे बीत चुके हैं, किसी ने भी आकर berth पर हक़ नहीं जताया है. मैं अब तक डेढ़ बोतल पानी और दो फ्रूटी (मेरी पसंदीदा) पी चुका हूँ, बहुत सारे गाने सुन चुका हूँ, मोनिका बलूची (आह!!!) के कुछ videos देख के खुश हो चुका हूँ और फिलहाल अद्वैत काला की 'Almost Single' हाथ मे ले कर TC का इंतज़ार कर रहा हूँ.
मेरी सामने वाली berth पर बैठी एक साँवली-सलोनी आंटी काफी देर से देख रही है कि मैं novel हाथ मे भले ही लिए हुए हूँ, लेकिन उसे पढने मे मेरा कोई ख़ास ध्यान नहीं है. मौके का फायदा उठाकर वो मुझसे इशारे मे ही novel मांगती है (मुझे ऐसे कमबख्तों से सख्त चिढ है, जो train मे बैठ कर दूसरों की किताबें या magazines मांगने लगते है) लेकिन मैं भी इशारे से ही जता देता हूँ कि अभी पढ़ रहा हूँ, इसलिए उसे वो novel नहीं मिलने वाली.
मेरे इनकार के बाद आंटी शायद बुरा मान गई है और उसका चेहरा कुछ कुछ वैसा हो गया है जैसा दुर्गा पूजा के लिए बनाई जाने वाली राक्षस की मूर्ती का होता है. जबकि मैं सोच रहा हूँ कि यदि आंटी के चेहरे पर उन राक्षसों जैसी दाढ़ी-मूंछे निकल आये तो उसके बेचारे पति की हालत क्या होगी.
तभी वहां अचानक श्री श्री 108 श्री TC महाराज (जय हो) प्रकट होते हैं. उसे देख के मैं इतना खुश हो जाता हूँ जितना कुछ साल पहले 'ऐसा जादू डाला रे'  गाने मे लारा दत्ता को नाचते देखकर हुआ था. खैर मैं उस TC (उसने इतनी गर्मी मे भी एक मोटा कोट पहन रखा है) से बात करता हूँ और उसे महात्मा गांधी की तस्वीरों वाला थोडा हरा चारा खिलाता हूँ. अब मैं अपने station तक अगले coach की एक side lower berth (वाह!) का मालिक हूँ.
Berth मिलने की ख़ुशी मे मैं Alexander the great जैसा महसूस कर रहा हूँ, जैसे कोई बड़ी लड़ाई जीत ली हो. मैं जल्दी से अपना बैग उठाता हूँ और उस आंटी (जो अब मुँह फेरे खिड़की से बाहर देख रही है) की तरफ एक नज़र डालकर अगले coach मे मौजूद अपनी berth की तरफ चल देता हूँ, इस वक्त मेरी बेफिक्री ऐसी है कि साला Tony Stark भी पानी मांग जाए.
जब तक TCs में थोड़ा सा भी लालच बाकी है, तब तक trains में पैसे देकर यूं ही berths मिलती रहेंगी. जय हो.

Wednesday, June 16, 2010

ये साले कॉलेज के दोस्त

सालों बाद Orkut पर enter कर रहा हूँ, बहुत सारे दोस्तों के scraps हैं... जाने क्यों उनके profiles खोल-खोल के देख रहा हूँ. शायद जानना चाहता हूँ कि वो कुछ बदल गए हैं या अब भी वैसे ही बकचोद हैं...
कॉलेज मे masters के वक्त दो दोस्त हुआ करते थे.... शोएब  और प्रशांत.
दोनों उम्र मे मुझसे बड़े थे, लेकिन जब मैं और प्रशांत जम के बियर पी लेते तो काहे की उम्र... शोएब कमीना पीता नहीं था (आज भी नहीं पीता) लेकिन जब हम दोनों पी के टुन्न होते तो वो हमें देख के बड़े मजे लेता था... उसका वो कमीनगी वाला चेहरा मैं कभी नहीं भूल सकता.
हम तीनो class की बंदियों के साथ घूमते, नई-नई चीज़ें try करते, खूब फिल्मे देखते, और शाम को जब बंदियाँ अपने hostel चली जाती तो मैं और प्रशांत अक्सर बियर पीकर बटर चिकन उड़ाते...
फिर जब हर चीज़ की अति हो जाती और exams करीब आ जाते तो हम सब मिल के थोडा बहुत पढ़ लेते (इसे हम group study कहते थे, जबकि study कितनी होती थी, ये सबको पता है)
Exams के दौरान शोएब के अन्दर का desperate student जाग जाता, जब हम तीनो प्रशांत की खटारा बाइक पे चढ़ के exams देने जा रहे होते तब भी शोएब के हाथ मे notes या book ज़रूर होती और वो कुछ ना कुछ याद करने मे लगा होता.
ये देखकर प्रशांत कहता, 'अरे महाराज (हाँ, हम MP-UP वालों मे से कई, इस लफ्ज़ पर बहुत भरोसा करते हैं ) अब बस कीजिये'
और शोएब अपनी बच्चों जैसी smile के साथ जवाब देता, 'नहीं महाराज फोड़ देना है साले को' (इस फोड़ देने का मतलब किसी को नहीं पता, शोएब को भी नहीं)
कॉलेज मे सबके एक पसंदीदा professor हुआ करते थे, Mr. Baghel
यार क्या पढ़ाते थे वो, एकदम Google जैसे थे, जो चाहो पूछ लो, हर subject मे माहिर.
उनकी class कोई नहीं छोड़ता था
एक और professor थीं, हमारे Mass Communication Dept. की head उप्पल मैम. उनका persona और attitude ऐसा था कि class की हर लड़की उन्ही के जैसी बनना चाहती थी. वो retirement की उम्र की थीं और उन्होंने शादी नहीं की थी. उनकी ये बात हर लड़की को बहुत fascinate करती थी. लडकियों से उप्पल मैम की बनती भी खूब थी. और हम लड़के (इस fascinated बिरादरी से बाहर वाले) मैम को बेलन वाली बाई की तरह देखते थे. हालाँकि हम उनकी बहुत इज्ज़त करते थे, और उनके सच्चेपन के कायल थे.
इसके अलावा कुछ virus किस्म के professors भी थे, जिनका पढाना सबको अखरता था और इतना ज्यादा अखरता था कि वो बेचारे यदि कोई सही बात भी बताते तो भी सबको गलत ही लगती.
Classroom के बाहर campus मे ही चाची की चाय की दुकान थी. Break के दौरान वहां सब चाय पीते और फिर तय  करते कि अगली class attend करनी है या bunk. जब किन्ही दो दोस्तों के बीच कोई बहस या झगडा होता तो गुस्सा दिखाने के लिए एक class room मे होता और दूसरा चाची की चाय की दूकान मे पेड़ के नीचे बैठा होता...
प्रशांत और शोएब एक ही flat मे रहते थे... landlord के घर मे दो बड़े-बड़े पालतू कुत्ते थे. एक alsatian और दूसरा dalmatian. साले वाकई मे बहुत कुत्ते थे. उनके गले मे ज़ंजीर पड़ी रहती और जब कोई उनके सामने से निकलता तो दोनों मिल के दहाड़ते. उनकी दहाड़ शायद शोएब को बहुत बुरी लगती, इसलिए वो जब भी उनके सामने से निकलता कोई न कोई इशारा ज़रूर करता, गाली भी देता.
फिर एक दिन उनमे से एक कुत्ते को शोएब से बदला लेने का मौका मिल गया, उसने शोएब को काट खाया, उस वक्त मैं और प्रशांत शायद कॉलेज मे थे, बाद मे जब शोएब ने हमें अपनी राम कहानी (कुत्ते का हमला और फिर doctor के injection का हमला) सुनाई तो हमने बहुत अफ़सोस जताया और जब शोएब चला गया तो मैं और प्रशांत खूब हँसे.
एक और लड़का था, दूसरे department का, राजेश रंजन नाम था उसका.
उससे कोई खास दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन उसकी बिहारी ठसक बहुत कमाल थी. उसे याद करते ही लंगड़ा त्यागी अपने आप ही याद आ जाता है, हालाँकि वो लंगड़ा जितना शातिर नहीं था.
Masters ख़तम होने तक कुछ झगडे हुए, बोलचाल भी बंद हुआ, एक-दूसरे को मनाना भी हुआ... अब याद करके हँसी आती है... वो बचपना मजेदार था.
आज हर कोई एक दूसरे से दूर अलग-अलग शहरों मे अपना career बनाने मे लगा है. पता नहीं अब कौन किसके बारे में क्या सोचता है या कभी सोचता भी है या नहीं. शोएब से मेरी आज भी फोन पर बात होती रहती है, हम आज भी एक-दूसरे को गाली दे के बात कर लेते हैं. प्रशांत से बात हुए एक-डेढ़ साल हो गया है, पता नहीं हम एक दूसरे को फ़ोन क्यों नहीं करते. उसकी साले की तो शादी भी हो गई है और एक बेटी भी है.
कभी कभी लगता है कि कॉलेज के वक़्त जैसी दोस्ती अब किसी और से होना मुमकिन नहीं है शायद. हालाँकि दोस्त अब भी बनते हैं, लेकिन वो दोस्ती कम और professional relationship ज्यादा होती है.

Monday, May 31, 2010

मैं...

सुबह के पांच बजने वाले हैं, मैं चाहता हूँ कि सो जाऊं, लेकिन नींद के बजाय मेरे दिमाग मे वो pornstar घूम रही है, जिसे मैंने अपना computer बंद करके अभी-अभी खुद से दूर किया है. Porn stars से live chat करना किसी party से कम नहीं होता.
बिस्तर पर लेटा हुआ हूँ और हवा कुछ ज्यादा ही ठंडी लग रही है. कोई भी मौसम हो, सुबह के पांच बजे इतनी ठंडक तो होती ही है. सोच रहा हूँ कि अगले महीने तक मुझे ये घर बदलना है, इसका bathroom मुझे पसंद नहीं.
वो pornstar अब मेरे दिमाग से जा चुकी है.
उठकर night bulb जला देने की इच्छा हो रही है, घुप्प अँधेरा अच्छा नहीं लग रहा. लेकिन फिर उस bulb की धीमी, घिनौनी रोशनी याद आ जाती है.
अब अँधेरा बेहतर लग रहा है.
मोबाइल उठाकर यूं ही inbox की सैर कर लेता हूँ, कुछ पुराने massage दोबारा पढ़ लेता हूँ, कुछ को delete कर देता हूँ. Images के folder में जाकर कुछ पुराने photographs देख लेता हूँ. Color theme और wallpaper भी बदल देता हूँ. लेकिन अब क्या? नींद तो अब भी गायब है.
Vodka का असर भी अब पूरी तरह ख़तम हो चुका है.
उठकर टीवी on कर लेता हूँ, HBO पर रिडली  स्कॉट की Body of Lies आ रही है. मेरी पसंदीदा फिल्मो मे से एक, लेकिन फिर भी मैं उसे देखने के बजाय channels surf करने लगता हूँ, ज्यादातर channels पर information advertising की बकवास छाई हुई है.
दरवाज़ा खोल कर बालकनी मे आ जाता हूँ. कुछ देर बाद सुबह होने वाली है और आसमान में कुछ नारंगीपन आना शुरू हो रहा है, बेहद खूबसूरत. मेरी आँखें खुश हो रही हैं.
आसपास किसी किस्म का कोई शोर भी नहीं है, इसलिए कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा है. गहरा खालीपन, सुकून और एक अजीब सी आज़ादी.
सड़क के उस तरफ की एक street light जलते-जलते अचानक बुझ गई है. शायद वो भी सोने चली गई है.
वापस लौटता हूँ, और बिस्तर पर आकर लेट जाता हूँ, टीवी पर किसी music channel पर कैटरीना कैफ नाच रही है,
ज़रा-ज़रा touch me touch me touch me...
मैं उसे touch करने के बजाय ये बताना चाहता हूँ कि उसकी jawline करीना से भी ज्यादा sharp है.
गाना ख़तम हो चुका है, कैटरीना जा चुकी है. मैं टीवी बंद कर देता हूँ, कमरे में फिर घुप्प अँधेरा है, मुझे अच्छा लग रहा है.
वो pornstar... कैटरीना... KG class की वो दोस्त मीनू... वो लड़की जिसे सालों पहले मैंने चरस पीते हुए देखा था... सारी औरतें मुझे एक साथ याद आ रही हैं...
पता नहीं मुझे नींद कब आएगी...

Monday, May 10, 2010

JUST TAKE LITE


बहुत कम औरतें इतनी दिलकश लगती हैं, जिन्हें देखकर दिमाग में हज़ारों ख़याल पैदा हो जाएँ. इस वीडियो मे (और इस फोटो मे भी) जिया खान ऐसी ही औरत लगती है. खासकर तब, जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही होती है, और तब जब पूल मे आधी डूबकर नाचते हुए बार-बार अपने औरत होने का अहसास करा रही होती है.
इसमें कुछ तो ख़ास है या शायद इसके देखने में. क्यूंकि जब भी आँखें भर के देखती हैं, लगता है जैसे या तो मर जाएगी या मार डालेगी. एकदम जानलेवा.

Saturday, May 8, 2010

लव सेक्स और धोखा+सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल

...खस्ताहाल, गंदले और बदबूदार सिनेमाहाल मे एक ऐसी फिल्म, जिसका इंतज़ार तब से था, जब पहली बार नेट पर उसका खूबसूरत पोस्टर देखा था। हाल के पार्किंग लाट पर अपनी बाइक खड़ी करता हूँ, ढेर साड़ी गाड़ियाँ खड़ी हुई हैं, सोचता हूँ - वाह, फिल्म चल जाएगी शायद क्योंकि लास्ट शो मे इतने लोग कम ही दिखते हैं (भले ही पहला दिन हो) वो भी तब जब फिल्म मे कोई फन्ने खां स्टार ना हो...
...इस चुप्पे शहर मे कोई पीवीआर, आईमैक्स या फन सिनेमा नहीं है, बस ज्योति, सरगम, रंगमहल जैसे ईस्ट मैन कलर पीरियड वाले नामो के सफ़ेद परदे हैं, उन्ही मे से एक संगम भी है। 
...तो ६० रुपये का सबसे महँगा- हा...हा...हा...- 'बालकनी गोल्ड' टिकट लेता हूँ और अन्दर जाता हूँ वहां पतली मूछों और मोटे चेहरे वाला एक बंदा (जिसके हाथ मे एक स्टील की टार्च है) मेरे पीले रंग का टिकट लेकर इत्मीनान से आधा फाड़ता है, मेरी हड़बड़ी देखता है और टोंट  मारने वाले लहजे मे एक ग्रेट इन्फार्मेशन देता है, "अबी सुरु नीं हुई हे, पन्दरा मिनट हें " मैं बाकी का बचा खुचा टिकट वापस लेता हूँ, अन्दर घुसता हूँ...
...सिंगल स्क्रीन सिनेमाहाल का टिकट भी साला, सबसे परफेक्ट रिप्रेजेंटेटिव होता है वहां का दुनिया का सबसे पतला कागज़, पीला, गुलाबी या फिर नीले रंग का
...हाल के अन्दर- सीढ़ियों के नीचे, खम्भों के ऊपर और चारो कोनो मे- फिल्म का कामसूत्र नुमा पोस्टर लगा हुआ है उफ़... कितना खूबसूरत है जब भी देखता हूँ इसे, लगता है पहली बार देख रहा हूँ, ब्रिलियंट। अब क्रेडिट टाइटल पढ़ रहा हूँ झटका! प्रोड्यूसर्स मे एकता कपूर का नाम नहीं है ऐसा कैसे? यानि मेरी इन्फार्मेशन गलत थी तो फिर पैशन फार सिनेमा मे एकता और दिबाकर बैनर्जी का जो कंवर्जेशन पढ़ा था, वो साला क्या था??? सोचा, चलो कल चेक करूँगा...
...सब कुछ जान लेने की हवस के चलते दुनिया भर की चीज़ें पढ़ लेना और फिर खुद को बुद्ध का अवतार मान कर कोई रेफरेंस चेक करना, लेकिन अगर वो गलती से भी गलत निकले तो ऐसा झटका लगना जैसे अमेरिका ने मेरे अपने सर पे न्यूक्लियर बम गिराने की धमकी पर्सनली दी हो- मेरे साथ ऐसा ही होता है.
...तो वापस मुड़ता हूँ, सीढियां चढ़ता हूँ, और हॉल के अन्दर पहुंचकर टॉर्च वाले को- जो गेट पर खड़े टॉर्च वाले का जुड़वाँ लगता है- अपना टिकट दिखाता हूँ. वो बंद सबसे ऊपर वाली लाइन की सीट पर टॉर्च लाइट डाल कर कहता है- बो जो पीली सर्ट बाले भैया हें ना, उनके जस्ट आगे बाली. - जाकर अपनी सीट पर बैठता हूँ. सीट के  हत्थों  के अगले सिरे पर बने गड्ढों मे कोल्ड ड्रिंक की खाली  बोतलें घुसी हुई हैं.- घटिया सिनेमा हॉल मे आपका स्वागत है. - थोड़ी खीझ महसूस करता हूँ और फिर उन बोतलों को बगल की खाली  सीटों के गड्ढों मे पटकता हूँ. अब खाली सफ़ेद परदे की तरफ घूरना शुरू कर देता हूँ...
...सिनेमा हॉल कितना भी बुरा हो, फिल्म  मन की हो तो सब माफ़. और अगर फिल्म का नाम लव, सेक्स और धोखा जैसा कुछ हो तब तो सौ खून भी माफ़. 
... तो फिल्म शुरू होने मे अभी थोडा टाइम है, मोबाइल निकालकर मैसेज टाइप करता हूँ- लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा- और दो-तीन दोस्तों को भेज देता हूँ. उनके रिप्लाई आना भी शुरू हो जाते हैं- फिल्म देख रहे हो क्या?? डार्लिंग डार्लिंग डार्लिंग.  वाह-वाह .- पीछे की सीटों पर चार-पांच इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स बैठे हैं.- ये स्टुडेंट्स की वो कौम है जो एक नज़र मे ही पहचान मे आ जाती है.- इन्ही मे वो पीली शर्ट वाले भैया भी हैं. हंसी-ठट्ठा चल रहा है. एक बोलता है, यार डॉली को भी ले के आना चाहिए...ठहाका! दूसरा बोलता है, हाँ बे बड़ा झाटू हॉल है साला एक भी माल नहीं है...एक और ठहाका! तीसरा एक्साईटमेंट मे उतराते हुए बोलता है, अबे आज तो गाली-वाली देते हुए देखेंगे पिक्चर...फिर ठहाका.  
...जब आस-पास कोई लड़की ना हो, और सिर्फ ढेर सारे लड़के हों - वो भी सिनेमाहाल मे - तो माहौल कुछ ज्यादा ही मर्दाना हो जाता है. हर कोई एक्सट्रीम हरकतें करने लगता है. फिर चाहे ठहाके लगाना हो, गालियाँ देना हो, या तरह-तरह के इशारे करना. 
...तो किसी फिल्मी विधवा जैसे दिख रहे खाली सफ़ेद परदे पर अचानक रंग दिखने लगते हैं, लगता है जैसे फिल्म शुरू हो गई. लेकिन विजुअल ऐसा है जैसे विको वज्रदंती टाइप के किसी प्रोडक्ट का ऐड हो. लेकिन फिर अगले ही पल लगता है कि अरे नहीं यार फिल्म ही है, कुछ ज्यादा ही इनोवेटिव है. अलग-अलग किस्म और क्वालिटी वाले कैमरों का कोई लोकल-सस्ता सा ऐड जैसा कुछ दिखाया जा रहा है. इसके बाद डिस्क्लेमर या वार्निंग जैसा कुछ आता है. जिसमे शुद्ध राष्ट्र भाषा मे कुछ ऐसा लिखा है- कैमरा हिल सकता है, फोकस और लाइटिंग की भी दिक्कत हो सकती है, इसलिए जिसे भी बवासीर, भगंदर या...- पूरा पढ़ पाऊ इसके पहले ही वो टेक्स्ट स्क्रीन से गायब हो जाता है. मैं मन मसोस के रह जाता हूँ. वाकई कुछ बेहद नया देखने को मिलने वाला है. तय कर लेता हू की जैसे ही इसकी ओरिजनल डीवीडी आएगी, तुरंत खरीद लूँगा. अब फिल्म शुरू हो रही है और मेरी आँखें, कान, नाक, मुंह सब फिल्म से चिपक गए हैं. आस-पास की किसी और चीज़ पर ध्यान दे पाना नामुमकिन है, लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा. डार्लिंग, डार्लिंग, डार्लिंग...
...लग रहा है जैसे सालो बाद कुछ नया देखने को मिला है, इन्ग्लोरिअस बास्टर्ड्स, पल्प फिक्शन और पैरानार्मल एक्टिविटी भी इतनी इंट्रेस्टिंग नहीं लगी थीं. शायद देसी चीज़ का स्वाद कुछ अलग ही होता है, मुझे रानी मुखर्जी याद आ रही है.
...तो अब  इंटरवल हो चूका है, इसके पहले मैं कई बार ताली बजा चुका हूँ. पीछे बैठे इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स ने भी इसमें खूब साथ निभाया. ज्यादातर लोग उठकर निवृत्त होने या कुछ खाने-पीने जा रहे हैं. मेरे ब्लेडर मे भी पानी भर गया है, लेकिन मैं उठकर कही नहीं जाता, इस डर से कि कही मेरे लौटने से पहले फिल्म शुरू हो गई तो?? मैं एक फ्रेम भी मिस करना नहीं चाहता. कुछ मिनट बीत चुके हैं, फिल्म अब तक शुरू नहीं हुई है. मन मे आता है कि जाकर हल्का हो आऊँ, फिर लगा कि अब तो और कम टाइम बचा है. सीट और मैं एक दुसरे से चिपके हुए है. अब छिछोरे टाइप के दो अंकल लोग अपना पॉपकॉर्न और सॉफ्ट ड्रिंक हाथ मे लिए मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ जाते हैं. एक बोलता है- मेने तो का ता सापित देकने चलते हें, जाने माकडा क्या दिका रिया हे- दूसरा अंकल कोई जवाब नहीं देता. फिल्म शुरू हो चुकी है...
... जब भी कोई फिल्म देख रहा होता हूँ, और किसी दूसरे  बन्दे का रिऐक्शन मेरे मन मुताबिक नहीं होता तो लगता है, बेवकूफ साला, कुछ नहीं आता जाता इसे...
 ...तो अब फिल्म ख़तम हो चुकी है. क्रेडिट टाईटल के साथ लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा बजने लगता है. सम-अप सॉन्ग का विजुअल देखकर पता चलता है कि फिल्म की एक फीमेल कैरेक्टर की ज़िन्दगी का इकलौता मकसद पूरा हो गया है, यानि नैरेटिव अब तक मौजूद है, वाह भई!!! मैं अपनी सीट से उठना नहीं चाहता, लेकिन मेरे आगे की सीट वाले लोग उठकर खड़े हो गए है. और उनके कारण  मुझे गाना दिखाई नहीं दे रहा है. मजबूरी मे मैं भी उठ के खड़ा हो जाता हूँ. अपने दोनों हाथ जींस की जेबों मे समेटे हुए मैं कुछ डिवाइन सा महसूस कर रहा हूँ. सोच रहा हूँ कि यदि अगला शो दिखाया जाने वाला होता तो दोबारा टिकट खरीदकर बैठ जाता, लेकिन अफ़सोस कि ये आज का लास्ट शो है. हॉल से बहार निकलकर, सीढियां उतरते हुए अपने आस-पास के लोगो के रिऐक्शन्स  सुनना चाहता हूँ. लेकिन मुझे सिर्फ शोर सुनाई दे रहा है, कोई बात ठीक से समझ नहीं आ रही. या फिर शायद मुझे सुनाई देना बंद हो गया है. पता नहीं. पार्किंग लाट पर पहुचकर बाइक स्टार्ट करता हूँ, आस-पास की हर आवाज़ गूंजती हुई सी लग रही है. पार्किंग लाट एकदम बंद-बंद सा है. बाइक लेकर मैं सड़क पर आ जाता हूँ. 
अब ऐसा लग रहा है जैसे किसी खुले मैदान मे आ गया हूँ. घर की तरफ चल देता हूँ, रात का सवा ग्यारह बज रहा है, सड़क करीब-करीब खाली है, कोई ट्रैफिक  नहीं. मेरे अन्दर का रोबोट ड्राइविंग कर रहा है और मैं बाइक चलाते हुए अब भी फिल्म देख रहा हूँ, लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा. डार्लिंग, डार्लिंग, डार्लिंग...