Wednesday, November 2, 2011

मूर्ति

एक पति-पत्नी को अपने एक दोस्त की शादी में जाना था. उनका अंदाजा था कि लौटने में काफी देर हो जाएगी. दो बच्चे भी थे उनके, एक 6 साल का और एक 8 का. पति-पत्नी ने तय किया कि बच्चों को साथ नहीं ले जायेंगे, क्योकि शादी की भीड़-भाड़ और नाच गाने में छोटे बच्चों को सम्हालना बड़ा मुश्किल होता है. तो उन्होंने अपने एक पडोसी, जो उनके अच्छे दोस्त भी थे, से मदद मांगी. पडोसी रात में उनके घर पर बच्चों के साथ सोने को तैयार हो गए.
रात को पडोसी की जगह उनकी बड़ी बेटी आई. उसने बताया कि घर पर अचानक कुछ मेहमान आ गए हैं , इसलिए डैडी की जगह मैं आपके घर पे रुक जाउंगी. पति-पत्नी अपने दोनों बच्चों को पडोसी की बड़ी बेटी के सहारे छोड़ के शादी में चले गए.
उनके जाने के बाद पडोसी की बेटी वक्त बिताने के लिए टीवी देखने लगी. बच्चे तो पहले ही अपने कमरे में सो चुके थे. रात को करीब 1 बजे के बाद उसे भी नींद आने लगी. वो बेडरूम में पहुंची, नाईट लाईट जल रही थी, हलकी नीली रौशनी थी. बच्चों के बेड के बगल में ही उसके लिए भी एक बेड लगा हुआ था. वो लेट गई. तभी उसका मोबाईल बजा, उन्हीं पति-पत्नी का फ़ोन था.

"कैसी हो बेटा? सब ठीक? कोई प्रॉब्लम तो नहीं है?"
"नहीं अंकल, सब ठीक है."
"वो दोनों सो रहे हैं ना?"
"हाँ, आराम से."
"चलो ठीक है फिर, तुम भी सो जाओ, रखता हूँ मैं."
"अरे अंकल... सुनिए... एक... बात पूछनी थी...."
"हाँ बेटा... क्या, बोलो?"
"एक्चुली वो... यहाँ कमरे में कपबोर्ड के बगल में जो लम्बी सी मूर्ति रखी है न... जिस पर आपने शायद शाल ओढाया हुआ है... उसे मैं ज़मीन पे लिटा दूं क्या... उसकी आँखें थोड़ी चमक रही हैं... इसलिए अजीब सी लग रही है... उसके कारण नींद नहीं आएगी मुझे..."
दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं आया, कुछ पलों तक चुप्पी छाई रही... फिर पति ने घबराई हुई आवाज़ में कहा, "तुम दोनों बच्चों को लेकर अपने घर भाग जाओ बेटा... हमारे बेडरूम में कोई मूर्ति नहीं है...."

बाद में उस बेडरूम में पडोसी क़ी बड़ी बेटी और दोनों बच्चों क़ी खून से सनी हुई लाशें मिलीं और वो मूर्ति आज तक किसी को नहीं मिली.

Wednesday, August 31, 2011

Email


बहुत दिनों से तुमसे बहुत सारी बातें कहने का मन था. इसलिए आज ये mail लिख रहा हूँ. पता नहीं कि...
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ऊपर की खाली जगह पर मैंने दुनिया भर की बकवास लिखी थी, जो तुम्हे mail करने के पहले मैंने जान-बूझकर delete कर दीं.
लिखा इसलिए था, क्योकि लग रहा था कि यदि मैंने ये सब किसी से भी नहीं बताया तो मेरा सर फट जायेगा, और मेरे दिमाग के चीथड़े उड़ जायेंगे. 
delete इसलिए कर दिया क्योकि तुम उसे पढ़ भले ही लेतीं पर मुझे शक है कि जो मैं कहना चाह रहा था, तुम वो समझ पातीं. और मुझे इस पर भी शक है कि तुम्हारे वो पढ लेने से कोई फर्क पड़ता.

Monday, July 25, 2011

तलहटी पे बसना गवारा नहीं मुझे

ख्वाहिशों के दर्रे पर यूं दौड़ना नंगे पाँव
सनक ये साली फितरतों में बसी है कहीं,

कुछ बेतरतीबी ज़रूर होगी मेरी चाल में
पर ये कशीदगी है तुम्हारे ओढ़े हुए सधेपन से मेरी,

हाँ मैं भी घबराता हूँ पैरों पे पड़ते छालों से
लेकिन तुम्हारी तरह यूं तलहटी पे बसना गवारा नहीं मुझे,

जानता हूँ मैं, इन टूटी-फूटी ज़मीनों के पार सब्जबाग है मेरा
उसकी पत्तियों की महक अक्सर आ जाती है यहाँ,

तुम यहीं बैठकर देखो अपना उगता सूरज हर रोज़
मेरा आसमां अभी ढेरों बाकी है...

Saturday, June 18, 2011

डायरी

11:50 PM, 28/MAY/2011

डायरी,
आज 28 मई है, उसकी मौत को पूरा एक साल हो गया आज. 6 साल की थी उस वक्त वो. अचानक ही हुई थी उसकी मौत, कोई बीमारी नहीं थी उसे, बस एक दिन अचानक उसके स्कूल से फ़ोन आया, उसकी मम्मी ने उठाया, मैं तो उस वक्त ऑफिस में था, बताया गया कि वो बेंच पर बैठे बैठे ही बेहोश हो गई, हम दोनों किसी तरह भागे-भागे स्कूल पहुंचे, तब भी वो बेहोश ही थी, उसे हॉस्पिटल लेकर गए, लेकिन डॉक्टर ने 8-10 मिनट में ही कह दिया कि she is no more. बाद में पता चला कि हॉस्पिटल पहुँचने से पहले ही उसकी जान निकल चुकी थी. हम दोनों ये समझ ही नहीं पाए कि स्कूल से हॉस्पिटल के रास्ते किस पल वो हमें छोड़ के चली गई.
15 अगस्त को उसका बर्थ डे आने वाला था. हम दोनों उसे प्यार से बेटू कहा करते थे. हमारी बेटू.
कहने को तो एक साल हो गया उसे गए, लेकिन मुझे आज भी लगता है कि एक दिन जब मैं ऑफिस से लौट के घर की कॉल बेल बजाऊंगा तो वो अपने विडियोगेम का रिमोट हाथ में लिए दरवाज़ा खोलेगी, और फिर जिद करके मुझे अपने पास बिठा लेगी, कि नहीं... नहीं...नहीं आप भी मेरे साथ खेलो ना पापा... प्लीज़.
कई बार सोचता हूँ, कि आखिर ऐसा क्या हुआ था उसे, जो अचानक कुछ ही मिनटों में सब खत्म हो गया. डॉक्टर ने बताया था कि मौत दिल की धड़कन रुकने से हुई थी, लेकिन क्या 6 साल की छोटी सी बच्ची की मौत की ये वजह झूठ नहीं लगती?
सोचा था कि अच्छे से अच्छे डॉक्टर से बात करूंगा, पर उसकी मौत की सच्ची वजह पता कर के रहूँगा... लेकिन एक दो डॉक्टर्स से मिलने के बाद ही लगने लगा, कि मैं उनका और अपना दोनों का वक्त ज़ाया कर रहा हूँ. 
वैसे भी, अगर कोई डॉक्टर सही वजह बता भी देता तो क्या फर्क पड़ जाता? बेटू वापस तो नहीं आ जाती? अब तो उसकी मम्मी ने भी मान लिया है कि शायद दिल की धड़कन ही रुकी होगी, या शायद हम दोनों ने. 
उसके पीले रंग के वो जूते हमने अब भी सम्हाल के रखे हैं, उसे बहुत पसंद थे वो. नीचे वाले फ्लैट के डॉ. सहाय की बेटी मीनू के जूते देख कर उसने जिद पकड़ ली थी, कि उसे भी बिकुल वैसे ही चाहिए, और जब मैं उसे लेकर बाज़ार गया, तो मीनू के जूते भूल कर उसने ख़ुशी-ख़ुशी अपने लिए ये पीले जूते पसंद कर लिए. 
फिर वो हर वक्त इन्हें ही पहने रहती, यहाँ तक कि रात को बिस्तर पर जाते वक्त भी नहीं उतारती, फिर जब उसकी आँख लग जाती, तो मैं चुपचाप उन्हें उतारता था. दिन भर जूते पहने रहने के कारण उसके पंजों में कुछ देर के लिए निशान से पड़ जाते, मैं उन्हें सहलाते हुए दूर करता. 
जब वो मेरी किसी चीज़ से बहुत खुश हो जाती तो कहती कि बड़ी होकर वो मुझसे ही शादी करेगी, इस बात पर उसकी मम्मी उसे चिढाया करती कि जब तक वो बड़ी होगी, तब तक तो पापा बुड्ढे हो जायेंगे, और फिर उसे बुड्ढे पापा से शादी करनी पड़ेगी. इस बात पर वो बहुत नाराज़ हो जाती और तब तक नहीं मानती, जब तक उसे उसका फेवरेट ऑरेंज जैम जी भर कर खाने की इजाज़त न मिल जाए. हमें इस तरह ब्लैकमेल करना उसे खूब आता था. 
मुझे याद है, एक बार उसने मुझसे पूछा था कि पापा आप सहाय अंकल की तरह दोपहर में ही घर क्यों नहीं लौट आते? मैंने उसे समझाया कि बेटू पापा को ऑफिस में बहुत काम करना पड़ता है, बस इसीलिए. ये सुनकर उसने हाँ में सिर ज़रूर हिलाया था पर शायद मेरी बात का मतलब वो समझ नहीं पाई थी, अपनी मम्मी से भी वो यही शिकायत करती कि पापा जल्दी घर नहीं आते. 
अब सोचता हूँ कि काश मैंने उसे कुछ और वक्त दिया होता... काश उसके साथ रोज़ विडियो गेम खेला होता...
वैसे अब उसे याद करते हुए मुझे रोना नहीं आता, बस कुछ पलों के लिए एक खालीपन सा उभर आता है....... नहीं... नहीं...नहीं आप भी मेरे साथ खेलो ना पापा... प्लीज़.

Friday, June 17, 2011

मन हल्का करने वाली चीज़


शाम के 7.30  बज रहे हैं, मैं अभी-अभी office से निकला हूँ और बहुत भूखा हूँ, जल्दी-जल्दी 7 number stop पहुँचता हूँ, मसालेदार आलू, cheese, और तवे पर गर्म होते butter की खुशबू से महक सा जाता हूँ. Sagar Gaire Fast food Corner. 
लोग Sandwich खरीदने के लिए Q में खड़े हैं, लड़के, लडकियां, बच्चे सब, मैं भी हाथ में prepayment की रसीद लिए उनके साथ Q में हूँ. एक बड़े से तवे पर उसने ढेर सारा butter फैला रखा है. उस पर 12-15 sandwich तैयार हो रहे हैं, तीन bread slices के बीच में भरा हुआ cheese और मसालेदार mashed आलू बाहर झाँक रहा है.
लोग बिलकुल तैयार खड़े हैं, इंतज़ार करना मुश्किल हुआ जा रहा है. कुछ का सब्र जवाब दे रहा है... 'भैया जल्दी करो, कितनी देर से खड़े हैं यार'
लेकिन वो किसी की आवाज़ पर ध्यान नहीं देता और किसी जुनूनी साधु की तरह sandwich बनाने की अपनी तपस्या में डूबा रहता है, 
अब वो तैयार हो चुके sandwiches को एक-एक कर के बगल में खड़े अपने साथी के सामने रख रहा है, जो उनमे फटाफट एक-एक cheese slice लगाने में जुटा है, उस बन्दे मे गज़ब की फुर्ती है, वो पन्नी में लिपटी cheese slices को एक ख़ास लय में इतनी तेज़ी से और इतनी महारथ के साथ बाहर निकाल रहा है, जैसे उसने इसका कोई course कर रखा हो. 
वो एक-एक करके पूछता जाता है, pack करना है??? खाना है??? उसके हाथ अभी भी उतनी ही तेज़ी से चल रहे हैं, वो एक बड़े से चाक़ू से sandwich के दो टुकड़े करता जाता है और pack करवाने आए लोगो को पहले देता है. जिन्हें pack नहीं कराना है, बल्कि यहीं खाना है, वो कुढ़े जा रहे हैं, मैं भी उनमे से एक हूँ.
आख़िरकार चांदी की तरह चमकती paper plate पर रखा कोई बारहवां-तेरहवां sandwich मेरे हिस्से आता है, उसे हाथ में लेकर पल भर के लिए मैं किसी सम्राट जैसा महसूस करता हूँ, जैसे दुनिया जीत ली हो, 
कुछ लोगो को अब भी इंतज़ार करना पड़ेगा, क्योकि तवा खाली हो चुका है. ये लोग बडबडाने  लगते हैं... 'क्या यार'... 'अब फिर उतना टाइम'... 'मैं पहले से खड़ा हूँ यार'... 'हद है'... 'मेरे चार थे फिर भी'....
बारह- पंद्रह sandwiches की अगली खेप तवे पर तैयार होने आ गई है. 
मैं वहां से आगे बढ़ के अपने sandwich को खाने के लिए हाथ में उठाता हूँ, उसकी करारी सतह दब कर खुल जाती है और cheese slice बाहर plate पर गिरने लगती है, मैं आराम से उसे सम्हालता हूँ और स्वाद लेना शुरू करता हूँ. tomato sauce, butter, bread, cheese, आलू, हरी चटनी, सब पूरी एकता के साथ एक plate पर हैं. 
जीभ और मन दोनों खुश हो रहे हैं. लग रहा है जैसे जी भर के रोने के बाद कोई मन हल्का करने वाली चीज़ खाई हो. ये sandwich सचमुच इस शहर की सबसे अच्छी चीज़ों में से एक है. 
सागर गैरे ने अपना धर्म निभा दिया है.

Wednesday, April 6, 2011

रात छिपकली


आधी रात का वक़्त है, शायद 2 -3  बजे का. Bike बहुत तेज़ी से, चुप्पी सी साधे चली जा रही है. थोड़ी देर बाद अचानक break लगता है, और जैसे सब कुछ रुक जाता है. 
वो बड़ी मुश्किल से अपना helmet उतार पाता है, उसे उल्टी होने वाली है. वो उतरने के लिए bike का stand लगाता ही है कि खुद को रोक नहीं पाता और एक तरफ झुक कर, बाइक पर बैठे-बैठे ही उल्टी कर देता है.  
वो उल्टी कर रहा है, खुद को ठीक से सम्हाल नहीं पा रहा है. उसके हाथ से helmet छूट कर सड़क पर लुढ़क गया है.
सड़क के दूसरी तरफ, divider के उस पार इसी वक्त एक कार निकलती है. 
उसकी उल्टी बंद हो चुकी है, और वो धीरे-धीरे हांफ रहा है. उसकी आँखें गीली हो गई हैं, और बहुत पसीना आ रहा है. उल्टी के बाद गले में जम आई खराश को वो बार-बार थूक रहा है. उल्टी के छीटों से उसका एक जूता गन्दा हो चुका है. 
वो रूमाल निकाल कर मुंह पोछता है, बैग से पानी की बोतल निकाल कर अपने सर पर उड़ेल लेता है और सड़क पर लुढके helmet की तरफ नज़र डालता है. 
फिर पीछे मुड़कर देखता है, उस कार की तरफ, जो थोड़ी दूर जाकर एक street lite के नीचे खड़ी हो गई है. वो bike को start किये बिना, धकेलते हुए helmet के पास तक ले जाता है और उसे उठाकर handle पर टांग लेता है. फिर ignition on करके वो एक बार फिर कार की तरफ मुड कर देखता है. 
अब कार के आगे के दोनों दरवाज़े खुल गए हैं और दो-तीन लोग बाहर आकर एक दूसरे से गुत्थम-गुत्था होते दिख रहे हैं, शायद उनमे एक औरत भी है. 
पता नहीं क्या हो रहा है.
उसके चेहरे पर बड़े-बड़े लफ़्ज़ों में लिखा है who cares
वो bike start करता है और वहां से निकल जाता है.
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वो घर पहुँच चुका है और दरवाज़े के ताले में चाबी डालने की कोशिश कर रहा है, लेकिन अँधेरा होने के कारण ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा. आखिरकार चाबी ताले के अन्दर चली जाती है, लेकिन हमेशा की तरह उसने चाबी को गलत तरफ घुमाया है, लेकिन जब तक उसे ये समझ में आता है, ताला खुल चुका होता है. उसके हाथ को ये पुरानी गलती बार-बार सुधारने की आदत पड़ चुकी है. 
वो अन्दर आता है, सारे कपडे और जूते उतारकर नंगा हो जाता है और kitchen से पानी की बोतल लेकर पूरी गटक जाता है. 
अब वो basin के आईने में खुद को देख रहा है. 
उसे अपना चेहरा सूजा हुआ सा दिख रहा है और ऐसा लग रहा है जैसे उसके होंठ और ज्यादा मोटे हो गए हों. उसे अपने बाल भी अजीब लग रहे हैं, सूखे और एक दूसरे से बुरी तरह चिपके हुए. उसे महसूस होता है कि आजकल वो बहुत बेढंगा दिखने लगा है. 
वो basin का tap on करता है और चेहरे पर पानी उछालता है. वो बहुत देर तक अपनी आँखें धोता रहता है. लेकिन फिर भी उनकी किरकिरी ख़तम नहीं होती. वो basin में ही अपने बाल भी गीले कर लेता है. 
वो फिर से खुद को आईने में देखता है, उसका चेहरा अब ज्यादा साफ़ दिख रहा है, और बालों से पानी की बूँदें टपक रही हैं, लेकिन उसे महसूस होता है कि खुद को इस तरह धो लेने के बाद भी उसके बेढंगेपन में कोई कमी नहीं आई है. उसे ये भी अजीब लगता है कि उसके कई हफ़्तों से अपने सीने के बाल shave नहीं किये हैं. 
अचानक वो तय करता है कि बहुत हो गया, ऐसे नहीं चलेगा. वो अपना razor उठता है और shower के नीचे आकर खड़ा हो जाता है. पानी बहुत ठंडा है, लेकिन वो shower बंद नहीं करता. shave करते वक़्त वो सोच रहा है कि उस कार में वो लोग कौन थे, वो औरत कौन थी?
पता नहीं कोई औरत थी भी या उसे बस धोखा हुआ है.
Shave के बाद वो shampoo की बोतल उठाता है. उसे इस shampoo की खुशबू बहुत पसंद है, हथेली पर ढेर सारा लेकर वो उसे अपनी नाक के करीब लाकर सूंघता है. ये shampoo दिखता भी बहुत खूबसूरत है, transparent और गाढ़ा, बेहद मुलायम सा. वो हथेली पर पड़े shampoo को चखने की कोशिश करता है, लेकिन इसका स्वाद बहुत ख़राब है. वो उसे थूक देता है और फिर बहुत देर तक shower के नीचे खड़ा रहता है. कितना सुकून मिल रहा है. 
Bathroom से बाहर आकर वो खुद को अपने उस blue towel से पोछता है और फिर पंखे के नीचे आकर खड़ा हो जाता है. खुद को आईने में देखता है, उसकी आँखे बहुत लाल हैं और दर्द कर रही हैं. लेकिन फिर भी उसे अच्छा  लग रहा है. बाल अब तक पूरी तरह सूखे नहीं हैं, लेकिन वो गीले बालों पर ही brush कर लेता है. 
उसने कपडे नहीं पहन रखे हैं, और पंखे की हवा बहुत तेज़ है. उसे हलकी ठण्ड भी लग रही है, लेकिन वो पंखे को धीमा नहीं करता. 
सुबह के 5 बजने वाले हैं.
वो टीवी ऑन करता है, TCM पर कोई फिल्म आ रही है, शायद क्युब्रिक की लोलिता. लेकिन वो काफी थका हुआ है, इसलिए टीवी mute कर के बिस्तर पर निढाल हो जाता है. 
पंखा अब भी उतना ही तेज़ चल रहा है और हमेशा की तरह आज फिर उसे लग रहा है, कि अभी ये पंखा आकर उस पर गिरेगा और उसके हाथ-पैर कट जायेंगे और कमरे की सारी दीवारें लाल हो जाएँगी. 
ये डर उसके मन में बचपन से ही है, पता नहीं कहाँ से आया है.
उसे फिर से हलकी ठण्ड महसूस हो रही है.
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दोपहर का वक़्त है. तेज़ धूप है. वो एक petrol pump पर अपनी bike के साथ खड़ा है, लेकिन उसे याद नहीं आ रहा कि उसने petrol भरवा लिया है या नहीं. 
उसे हलकी ठण्ड भी लग रही है, जबकि धूप बहुत तेज़ है. 
एक कार petrol pump की तरफ आती हुई दिखाई देती है, बिलकुल कल रात जैसी. वो कार उससे थोड़ी दूरी पर आकर रुक जाती है, और उसमे से एक लड़की बाहर आती है. 
वो उसी की तरफ देख रही है, उसके होंठ कत्थई रंग के हैं, वो उसके करीब आ रही है.
लड़की का चेहरा जाना-पहचाना सा लग रहा है, लेकिन उसे उसका नाम याद नहीं आ रहा. वो काफी करीब आ जाती है और अचानक उसके ऊपर उल्टी कर देती है, वो सकपका कर रह जाता है. 
उसके पैर लड़की की उल्टी में सन चुके हैं और अब petrol pump पर खड़ा हर आदमी उसे घूर रहा है, जैसे सारी गलती उसी की हो.
वो लड़की भी उसी को घूर रही है, उसके हाथों में वही blue towel है. 
उसे समझ में नहीं आ रहा कि आखिर ये हो क्या रहा है.
उसे अब भी हलकी ठण्ड लग रही है.