Wednesday, June 16, 2010

ये साले कॉलेज के दोस्त

सालों बाद Orkut पर enter कर रहा हूँ, बहुत सारे दोस्तों के scraps हैं... जाने क्यों उनके profiles खोल-खोल के देख रहा हूँ. शायद जानना चाहता हूँ कि वो कुछ बदल गए हैं या अब भी वैसे ही बकचोद हैं...
कॉलेज मे masters के वक्त दो दोस्त हुआ करते थे.... शोएब  और प्रशांत.
दोनों उम्र मे मुझसे बड़े थे, लेकिन जब मैं और प्रशांत जम के बियर पी लेते तो काहे की उम्र... शोएब कमीना पीता नहीं था (आज भी नहीं पीता) लेकिन जब हम दोनों पी के टुन्न होते तो वो हमें देख के बड़े मजे लेता था... उसका वो कमीनगी वाला चेहरा मैं कभी नहीं भूल सकता.
हम तीनो class की बंदियों के साथ घूमते, नई-नई चीज़ें try करते, खूब फिल्मे देखते, और शाम को जब बंदियाँ अपने hostel चली जाती तो मैं और प्रशांत अक्सर बियर पीकर बटर चिकन उड़ाते...
फिर जब हर चीज़ की अति हो जाती और exams करीब आ जाते तो हम सब मिल के थोडा बहुत पढ़ लेते (इसे हम group study कहते थे, जबकि study कितनी होती थी, ये सबको पता है)
Exams के दौरान शोएब के अन्दर का desperate student जाग जाता, जब हम तीनो प्रशांत की खटारा बाइक पे चढ़ के exams देने जा रहे होते तब भी शोएब के हाथ मे notes या book ज़रूर होती और वो कुछ ना कुछ याद करने मे लगा होता.
ये देखकर प्रशांत कहता, 'अरे महाराज (हाँ, हम MP-UP वालों मे से कई, इस लफ्ज़ पर बहुत भरोसा करते हैं ) अब बस कीजिये'
और शोएब अपनी बच्चों जैसी smile के साथ जवाब देता, 'नहीं महाराज फोड़ देना है साले को' (इस फोड़ देने का मतलब किसी को नहीं पता, शोएब को भी नहीं)
कॉलेज मे सबके एक पसंदीदा professor हुआ करते थे, Mr. Baghel
यार क्या पढ़ाते थे वो, एकदम Google जैसे थे, जो चाहो पूछ लो, हर subject मे माहिर.
उनकी class कोई नहीं छोड़ता था
एक और professor थीं, हमारे Mass Communication Dept. की head उप्पल मैम. उनका persona और attitude ऐसा था कि class की हर लड़की उन्ही के जैसी बनना चाहती थी. वो retirement की उम्र की थीं और उन्होंने शादी नहीं की थी. उनकी ये बात हर लड़की को बहुत fascinate करती थी. लडकियों से उप्पल मैम की बनती भी खूब थी. और हम लड़के (इस fascinated बिरादरी से बाहर वाले) मैम को बेलन वाली बाई की तरह देखते थे. हालाँकि हम उनकी बहुत इज्ज़त करते थे, और उनके सच्चेपन के कायल थे.
इसके अलावा कुछ virus किस्म के professors भी थे, जिनका पढाना सबको अखरता था और इतना ज्यादा अखरता था कि वो बेचारे यदि कोई सही बात भी बताते तो भी सबको गलत ही लगती.
Classroom के बाहर campus मे ही चाची की चाय की दुकान थी. Break के दौरान वहां सब चाय पीते और फिर तय  करते कि अगली class attend करनी है या bunk. जब किन्ही दो दोस्तों के बीच कोई बहस या झगडा होता तो गुस्सा दिखाने के लिए एक class room मे होता और दूसरा चाची की चाय की दूकान मे पेड़ के नीचे बैठा होता...
प्रशांत और शोएब एक ही flat मे रहते थे... landlord के घर मे दो बड़े-बड़े पालतू कुत्ते थे. एक alsatian और दूसरा dalmatian. साले वाकई मे बहुत कुत्ते थे. उनके गले मे ज़ंजीर पड़ी रहती और जब कोई उनके सामने से निकलता तो दोनों मिल के दहाड़ते. उनकी दहाड़ शायद शोएब को बहुत बुरी लगती, इसलिए वो जब भी उनके सामने से निकलता कोई न कोई इशारा ज़रूर करता, गाली भी देता.
फिर एक दिन उनमे से एक कुत्ते को शोएब से बदला लेने का मौका मिल गया, उसने शोएब को काट खाया, उस वक्त मैं और प्रशांत शायद कॉलेज मे थे, बाद मे जब शोएब ने हमें अपनी राम कहानी (कुत्ते का हमला और फिर doctor के injection का हमला) सुनाई तो हमने बहुत अफ़सोस जताया और जब शोएब चला गया तो मैं और प्रशांत खूब हँसे.
एक और लड़का था, दूसरे department का, राजेश रंजन नाम था उसका.
उससे कोई खास दोस्ती तो नहीं थी, लेकिन उसकी बिहारी ठसक बहुत कमाल थी. उसे याद करते ही लंगड़ा त्यागी अपने आप ही याद आ जाता है, हालाँकि वो लंगड़ा जितना शातिर नहीं था.
Masters ख़तम होने तक कुछ झगडे हुए, बोलचाल भी बंद हुआ, एक-दूसरे को मनाना भी हुआ... अब याद करके हँसी आती है... वो बचपना मजेदार था.
आज हर कोई एक दूसरे से दूर अलग-अलग शहरों मे अपना career बनाने मे लगा है. पता नहीं अब कौन किसके बारे में क्या सोचता है या कभी सोचता भी है या नहीं. शोएब से मेरी आज भी फोन पर बात होती रहती है, हम आज भी एक-दूसरे को गाली दे के बात कर लेते हैं. प्रशांत से बात हुए एक-डेढ़ साल हो गया है, पता नहीं हम एक दूसरे को फ़ोन क्यों नहीं करते. उसकी साले की तो शादी भी हो गई है और एक बेटी भी है.
कभी कभी लगता है कि कॉलेज के वक़्त जैसी दोस्ती अब किसी और से होना मुमकिन नहीं है शायद. हालाँकि दोस्त अब भी बनते हैं, लेकिन वो दोस्ती कम और professional relationship ज्यादा होती है.