मैं जल्दी-जल्दी स्टेशन की सीढियां चढ़ रहा हूँ...हडबडाया हुआ हूँ...पीठ पर लदा बैग अचानक बहुत भारी लगने लगा है... 10 मिनट मे ट्रेन जाने वाली है और मुझे अभी-अभी बताया गया है कि मेरा e-ticket confirm नहीं हुआ है इसलिए नियम के मुताबिक cancel हो गया है... अब मुझे मजबूरन general ticket लेना पड़ेगा और फिर TC को fine और रिश्वत दोनों देना पड़ेगा, ताकि मुझे एक passenger ही माना जाए, बिना टिकट वाला नहीं...
इस वक्त मैं बहुत शिद्दत से IRCTC के head office मे एक bomb plant करना चाहता हूँ...
तो जल्दी-जल्दी general ticket खरीदता हूँ और उसे ले के platform पर खड़े TC के पास जाता हूँ, उसे अपने e-ticket का printout दिखा के सारा हाल बताना चाहता हूँ, लेकिन मैं कुछ बोल पाऊँ इससे पहले ही वो मोटी तोंद वाला TC अपना एक हाँथ थोडा ऊपर उठाता है और डमरू बजाने वाले अंदाज़ मे हिलाते हुए कहता है...
''इधर AC मे कोई berth नहीं है, वहाँ sleeper मे जा के देखिये''
यानि अब मुझे पूरी रात sleeper coach की उमस मे सफ़र करना होगा, उस पर तुर्रा ये कि अब तक मेरे पास कोई berth भी नहीं है. एक बुरे सफ़र की इससे अच्छी शुरुआत और क्या हो सकती है. पता नहीं लोग शादी क्यों करते हैं (इस train से मैं अपने cousin की शादी मे जा रहा हूँ.)
खैर मैं हारकर वापस मुड़ता हूँ और मन ही मन उस TC की सातों पुश्तों को गरियाता हूँ, फिर बेवजह ममता बनर्जी और पूरे देश के railway system को कोसता हूँ (हम media वाले दूसरो के काम मे नुक्स निकालने और उन्हें कोसने मे माहिर होते हैं)
अब मैं sleeper coach की तरफ बढ़ रहा हूँ, मेरा mood off हो चुका है, मेरी शर्ट करीब-करीब पूरी भीग चुकी है, और मेरा बेचारा रूमाल इस कदर गीला हो चुका है, कि निचोड़ा जा सकता है. मुझे इतना पसीना क्यों आ रहा है, जबकि इस वक़्त शाम का सात बजा हुआ है और हलकी ठंडी हवा चल रही है.
मैं sleeper के TC को ढूँढ रहा हूँ, लेकिन वो न जाने कहाँ मर गया है. मेरी हालत इस वक्त काफी खराब है, लेकिन मुझे खुद के बजाय इसके TC पर तरस आ रहा है. सोच रहा हूँ कि वो बेचारा कुछ हरी पत्तियाँ कमाने के लिए किसी बकरे की तलाश मे कही इधर-उधर गया होगा, जबकि मैं यहाँ कितने भी पैसे दे के एक side lower berth (मुझे इसके अलावा कोई और berth पसंद नहीं) के लिए हलाल होने को तैयार खडा हूँ.
Time देखता हूँ, 15 मिनट बीत चुके है लेकिन ट्रेन अब भी चुपचाप खड़ी है. यानी पहले स्टेशन से ही लेट होना शुरू. मैं फिर से ममता बनर्जी और railway system को कोसना चाहता हूँ, लेकिन सामने से एक खूबसूरत लड़की अपना भारी सा बैग लिए चली आ रही है. लेकिन वो मेरी तरफ देखती भी नहीं है (हे भगवान्, ऐसा कैसे हो सकता है आखिर!) और बगल से निकल कर आगे बढ़ जाती है. शायद उसका reservation AC coach मे है. उसकी हलकी सी खुशबू आई, अच्छी थी, कुछ जानी-पहचानी सी (शायद हमारा deo same होगा... उफ़ मैं इतने अंदाजे क्यों लगाता हूँ) मैं मुड़कर उसे एक नज़र देखता हूँ, उसकी T-shirt पर पीछे लिखा हुआ है...
better luck next time!
हद हो गई यार, एक पल के लिए तो मन किया कि उसके पास जाऊं और कहूं कि इस e-ticket की मेहरबानी ना होती तो शायद मैं उसके साथ एक ही coach मे बैठा होता और फिर बताता कि better luck किसे कहते हैं.
खैर... उसे भूलकर मैं general ticket के साथ पूरी बेशर्मी से sleeper coach मे चढ़ता हूँ, खाली पड़ी एक side lower berth देखता हूँ, उसके सामने अपना बैग पटकता हूँ और berth पर आराम से बैठ जाता हूँ, फिर बैग के pocket से
earpiece निकाल कर अपने कानो मे लगा लेता हूँ और एक FM पर आ कर रूक जाता हूँ,
रांझा रांझा कर गई वे मैं...
पांच-छः मिनट के लिए मैं सब भूल जाता हूँ. गाना ख़त्म होते ही कोई जोकर RJ अपनी बकवास शुरू कर देती है. मैं
earpiece निकाल कर रख देता हूँ. इन पांच-छः मिनटों मे मुझे जो राहत मिली उसके लिए मैं रहमान, गुलज़ार, अनुराधा श्रीराम और रेखा भारद्वाज को गले लगाना चाहता हूँ.
Train चल चुकी है (15 मिनट से ज्यादा लेट ), खिड़की से आने वाली हवा बहुत सुकून भरी है. मैं आराम से बैठा ज़रूर हूँ लेकिन अपने चारो तरफ बैठे लोगो को देख के सोच रहा हूँ कि अभी कोई आकर ticket के बदले इस berth पर अपना हक़ जताएगा और मुझे मजबूरन उठना पड़ेगा. लेकिन फिर सोचता हूँ कि ठीक है यार, इतना परेशान क्या होना, देखा जायेगा.
तो दो station निकल चुके है, train चले हुए तकरीबन डेढ़ घंटे बीत चुके हैं, किसी ने भी आकर berth पर हक़ नहीं जताया है. मैं अब तक डेढ़ बोतल पानी और दो फ्रूटी (मेरी पसंदीदा) पी चुका हूँ, बहुत सारे गाने सुन चुका हूँ, मोनिका बलूची (आह!!!) के कुछ videos देख के खुश हो चुका हूँ और फिलहाल अद्वैत काला की 'Almost Single' हाथ मे ले कर TC का इंतज़ार कर रहा हूँ.
मेरी सामने वाली berth पर बैठी एक साँवली-सलोनी आंटी काफी देर से देख रही है कि मैं novel हाथ मे भले ही लिए हुए हूँ, लेकिन उसे पढने मे मेरा कोई ख़ास ध्यान नहीं है. मौके का फायदा उठाकर वो मुझसे इशारे मे ही novel मांगती है (मुझे ऐसे कमबख्तों से सख्त चिढ है, जो train मे बैठ कर दूसरों की किताबें या magazines मांगने लगते है) लेकिन मैं भी इशारे से ही जता देता हूँ कि अभी पढ़ रहा हूँ, इसलिए उसे वो novel नहीं मिलने वाली.
मेरे इनकार के बाद आंटी शायद बुरा मान गई है और उसका चेहरा कुछ कुछ वैसा हो गया है जैसा दुर्गा पूजा के लिए बनाई जाने वाली राक्षस की मूर्ती का होता है. जबकि मैं सोच रहा हूँ कि यदि आंटी के चेहरे पर उन राक्षसों जैसी दाढ़ी-मूंछे निकल आये तो उसके बेचारे पति की हालत क्या होगी.
तभी वहां अचानक श्री श्री 108 श्री TC महाराज (जय हो) प्रकट होते हैं. उसे देख के मैं इतना खुश हो जाता हूँ जितना कुछ साल पहले
'ऐसा जादू डाला रे' गाने मे लारा दत्ता को नाचते देखकर हुआ था. खैर मैं उस TC (उसने इतनी गर्मी मे भी एक मोटा कोट पहन रखा है) से बात करता हूँ और उसे महात्मा गांधी की तस्वीरों वाला थोडा हरा चारा खिलाता हूँ. अब मैं अपने station तक अगले coach की एक side lower berth (वाह!) का मालिक हूँ.
Berth मिलने की ख़ुशी मे मैं Alexander the great जैसा महसूस कर रहा हूँ, जैसे कोई बड़ी लड़ाई जीत ली हो. मैं जल्दी से अपना बैग उठाता हूँ और उस आंटी (जो अब मुँह फेरे खिड़की से बाहर देख रही है) की तरफ एक नज़र डालकर अगले coach मे मौजूद अपनी berth की तरफ चल देता हूँ, इस वक्त मेरी बेफिक्री ऐसी है कि साला Tony Stark भी पानी मांग जाए.
जब तक TCs में थोड़ा सा भी लालच बाकी है, तब तक trains में पैसे देकर यूं ही berths मिलती रहेंगी. जय हो.