Monday, May 31, 2010

मैं...

सुबह के पांच बजने वाले हैं, मैं चाहता हूँ कि सो जाऊं, लेकिन नींद के बजाय मेरे दिमाग मे वो pornstar घूम रही है, जिसे मैंने अपना computer बंद करके अभी-अभी खुद से दूर किया है. Porn stars से live chat करना किसी party से कम नहीं होता.
बिस्तर पर लेटा हुआ हूँ और हवा कुछ ज्यादा ही ठंडी लग रही है. कोई भी मौसम हो, सुबह के पांच बजे इतनी ठंडक तो होती ही है. सोच रहा हूँ कि अगले महीने तक मुझे ये घर बदलना है, इसका bathroom मुझे पसंद नहीं.
वो pornstar अब मेरे दिमाग से जा चुकी है.
उठकर night bulb जला देने की इच्छा हो रही है, घुप्प अँधेरा अच्छा नहीं लग रहा. लेकिन फिर उस bulb की धीमी, घिनौनी रोशनी याद आ जाती है.
अब अँधेरा बेहतर लग रहा है.
मोबाइल उठाकर यूं ही inbox की सैर कर लेता हूँ, कुछ पुराने massage दोबारा पढ़ लेता हूँ, कुछ को delete कर देता हूँ. Images के folder में जाकर कुछ पुराने photographs देख लेता हूँ. Color theme और wallpaper भी बदल देता हूँ. लेकिन अब क्या? नींद तो अब भी गायब है.
Vodka का असर भी अब पूरी तरह ख़तम हो चुका है.
उठकर टीवी on कर लेता हूँ, HBO पर रिडली  स्कॉट की Body of Lies आ रही है. मेरी पसंदीदा फिल्मो मे से एक, लेकिन फिर भी मैं उसे देखने के बजाय channels surf करने लगता हूँ, ज्यादातर channels पर information advertising की बकवास छाई हुई है.
दरवाज़ा खोल कर बालकनी मे आ जाता हूँ. कुछ देर बाद सुबह होने वाली है और आसमान में कुछ नारंगीपन आना शुरू हो रहा है, बेहद खूबसूरत. मेरी आँखें खुश हो रही हैं.
आसपास किसी किस्म का कोई शोर भी नहीं है, इसलिए कुछ ज्यादा ही अच्छा लग रहा है. गहरा खालीपन, सुकून और एक अजीब सी आज़ादी.
सड़क के उस तरफ की एक street light जलते-जलते अचानक बुझ गई है. शायद वो भी सोने चली गई है.
वापस लौटता हूँ, और बिस्तर पर आकर लेट जाता हूँ, टीवी पर किसी music channel पर कैटरीना कैफ नाच रही है,
ज़रा-ज़रा touch me touch me touch me...
मैं उसे touch करने के बजाय ये बताना चाहता हूँ कि उसकी jawline करीना से भी ज्यादा sharp है.
गाना ख़तम हो चुका है, कैटरीना जा चुकी है. मैं टीवी बंद कर देता हूँ, कमरे में फिर घुप्प अँधेरा है, मुझे अच्छा लग रहा है.
वो pornstar... कैटरीना... KG class की वो दोस्त मीनू... वो लड़की जिसे सालों पहले मैंने चरस पीते हुए देखा था... सारी औरतें मुझे एक साथ याद आ रही हैं...
पता नहीं मुझे नींद कब आएगी...

Monday, May 10, 2010

JUST TAKE LITE


बहुत कम औरतें इतनी दिलकश लगती हैं, जिन्हें देखकर दिमाग में हज़ारों ख़याल पैदा हो जाएँ. इस वीडियो मे (और इस फोटो मे भी) जिया खान ऐसी ही औरत लगती है. खासकर तब, जब सीढ़ियों से नीचे उतर रही होती है, और तब जब पूल मे आधी डूबकर नाचते हुए बार-बार अपने औरत होने का अहसास करा रही होती है.
इसमें कुछ तो ख़ास है या शायद इसके देखने में. क्यूंकि जब भी आँखें भर के देखती हैं, लगता है जैसे या तो मर जाएगी या मार डालेगी. एकदम जानलेवा.

Saturday, May 8, 2010

लव सेक्स और धोखा+सिंगल स्क्रीन सिनेमाहॉल

...खस्ताहाल, गंदले और बदबूदार सिनेमाहाल मे एक ऐसी फिल्म, जिसका इंतज़ार तब से था, जब पहली बार नेट पर उसका खूबसूरत पोस्टर देखा था। हाल के पार्किंग लाट पर अपनी बाइक खड़ी करता हूँ, ढेर साड़ी गाड़ियाँ खड़ी हुई हैं, सोचता हूँ - वाह, फिल्म चल जाएगी शायद क्योंकि लास्ट शो मे इतने लोग कम ही दिखते हैं (भले ही पहला दिन हो) वो भी तब जब फिल्म मे कोई फन्ने खां स्टार ना हो...
...इस चुप्पे शहर मे कोई पीवीआर, आईमैक्स या फन सिनेमा नहीं है, बस ज्योति, सरगम, रंगमहल जैसे ईस्ट मैन कलर पीरियड वाले नामो के सफ़ेद परदे हैं, उन्ही मे से एक संगम भी है। 
...तो ६० रुपये का सबसे महँगा- हा...हा...हा...- 'बालकनी गोल्ड' टिकट लेता हूँ और अन्दर जाता हूँ वहां पतली मूछों और मोटे चेहरे वाला एक बंदा (जिसके हाथ मे एक स्टील की टार्च है) मेरे पीले रंग का टिकट लेकर इत्मीनान से आधा फाड़ता है, मेरी हड़बड़ी देखता है और टोंट  मारने वाले लहजे मे एक ग्रेट इन्फार्मेशन देता है, "अबी सुरु नीं हुई हे, पन्दरा मिनट हें " मैं बाकी का बचा खुचा टिकट वापस लेता हूँ, अन्दर घुसता हूँ...
...सिंगल स्क्रीन सिनेमाहाल का टिकट भी साला, सबसे परफेक्ट रिप्रेजेंटेटिव होता है वहां का दुनिया का सबसे पतला कागज़, पीला, गुलाबी या फिर नीले रंग का
...हाल के अन्दर- सीढ़ियों के नीचे, खम्भों के ऊपर और चारो कोनो मे- फिल्म का कामसूत्र नुमा पोस्टर लगा हुआ है उफ़... कितना खूबसूरत है जब भी देखता हूँ इसे, लगता है पहली बार देख रहा हूँ, ब्रिलियंट। अब क्रेडिट टाइटल पढ़ रहा हूँ झटका! प्रोड्यूसर्स मे एकता कपूर का नाम नहीं है ऐसा कैसे? यानि मेरी इन्फार्मेशन गलत थी तो फिर पैशन फार सिनेमा मे एकता और दिबाकर बैनर्जी का जो कंवर्जेशन पढ़ा था, वो साला क्या था??? सोचा, चलो कल चेक करूँगा...
...सब कुछ जान लेने की हवस के चलते दुनिया भर की चीज़ें पढ़ लेना और फिर खुद को बुद्ध का अवतार मान कर कोई रेफरेंस चेक करना, लेकिन अगर वो गलती से भी गलत निकले तो ऐसा झटका लगना जैसे अमेरिका ने मेरे अपने सर पे न्यूक्लियर बम गिराने की धमकी पर्सनली दी हो- मेरे साथ ऐसा ही होता है.
...तो वापस मुड़ता हूँ, सीढियां चढ़ता हूँ, और हॉल के अन्दर पहुंचकर टॉर्च वाले को- जो गेट पर खड़े टॉर्च वाले का जुड़वाँ लगता है- अपना टिकट दिखाता हूँ. वो बंद सबसे ऊपर वाली लाइन की सीट पर टॉर्च लाइट डाल कर कहता है- बो जो पीली सर्ट बाले भैया हें ना, उनके जस्ट आगे बाली. - जाकर अपनी सीट पर बैठता हूँ. सीट के  हत्थों  के अगले सिरे पर बने गड्ढों मे कोल्ड ड्रिंक की खाली  बोतलें घुसी हुई हैं.- घटिया सिनेमा हॉल मे आपका स्वागत है. - थोड़ी खीझ महसूस करता हूँ और फिर उन बोतलों को बगल की खाली  सीटों के गड्ढों मे पटकता हूँ. अब खाली सफ़ेद परदे की तरफ घूरना शुरू कर देता हूँ...
...सिनेमा हॉल कितना भी बुरा हो, फिल्म  मन की हो तो सब माफ़. और अगर फिल्म का नाम लव, सेक्स और धोखा जैसा कुछ हो तब तो सौ खून भी माफ़. 
... तो फिल्म शुरू होने मे अभी थोडा टाइम है, मोबाइल निकालकर मैसेज टाइप करता हूँ- लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा- और दो-तीन दोस्तों को भेज देता हूँ. उनके रिप्लाई आना भी शुरू हो जाते हैं- फिल्म देख रहे हो क्या?? डार्लिंग डार्लिंग डार्लिंग.  वाह-वाह .- पीछे की सीटों पर चार-पांच इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स बैठे हैं.- ये स्टुडेंट्स की वो कौम है जो एक नज़र मे ही पहचान मे आ जाती है.- इन्ही मे वो पीली शर्ट वाले भैया भी हैं. हंसी-ठट्ठा चल रहा है. एक बोलता है, यार डॉली को भी ले के आना चाहिए...ठहाका! दूसरा बोलता है, हाँ बे बड़ा झाटू हॉल है साला एक भी माल नहीं है...एक और ठहाका! तीसरा एक्साईटमेंट मे उतराते हुए बोलता है, अबे आज तो गाली-वाली देते हुए देखेंगे पिक्चर...फिर ठहाका.  
...जब आस-पास कोई लड़की ना हो, और सिर्फ ढेर सारे लड़के हों - वो भी सिनेमाहाल मे - तो माहौल कुछ ज्यादा ही मर्दाना हो जाता है. हर कोई एक्सट्रीम हरकतें करने लगता है. फिर चाहे ठहाके लगाना हो, गालियाँ देना हो, या तरह-तरह के इशारे करना. 
...तो किसी फिल्मी विधवा जैसे दिख रहे खाली सफ़ेद परदे पर अचानक रंग दिखने लगते हैं, लगता है जैसे फिल्म शुरू हो गई. लेकिन विजुअल ऐसा है जैसे विको वज्रदंती टाइप के किसी प्रोडक्ट का ऐड हो. लेकिन फिर अगले ही पल लगता है कि अरे नहीं यार फिल्म ही है, कुछ ज्यादा ही इनोवेटिव है. अलग-अलग किस्म और क्वालिटी वाले कैमरों का कोई लोकल-सस्ता सा ऐड जैसा कुछ दिखाया जा रहा है. इसके बाद डिस्क्लेमर या वार्निंग जैसा कुछ आता है. जिसमे शुद्ध राष्ट्र भाषा मे कुछ ऐसा लिखा है- कैमरा हिल सकता है, फोकस और लाइटिंग की भी दिक्कत हो सकती है, इसलिए जिसे भी बवासीर, भगंदर या...- पूरा पढ़ पाऊ इसके पहले ही वो टेक्स्ट स्क्रीन से गायब हो जाता है. मैं मन मसोस के रह जाता हूँ. वाकई कुछ बेहद नया देखने को मिलने वाला है. तय कर लेता हू की जैसे ही इसकी ओरिजनल डीवीडी आएगी, तुरंत खरीद लूँगा. अब फिल्म शुरू हो रही है और मेरी आँखें, कान, नाक, मुंह सब फिल्म से चिपक गए हैं. आस-पास की किसी और चीज़ पर ध्यान दे पाना नामुमकिन है, लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा. डार्लिंग, डार्लिंग, डार्लिंग...
...लग रहा है जैसे सालो बाद कुछ नया देखने को मिला है, इन्ग्लोरिअस बास्टर्ड्स, पल्प फिक्शन और पैरानार्मल एक्टिविटी भी इतनी इंट्रेस्टिंग नहीं लगी थीं. शायद देसी चीज़ का स्वाद कुछ अलग ही होता है, मुझे रानी मुखर्जी याद आ रही है.
...तो अब  इंटरवल हो चूका है, इसके पहले मैं कई बार ताली बजा चुका हूँ. पीछे बैठे इंजीनियरिंग स्टुडेंट्स ने भी इसमें खूब साथ निभाया. ज्यादातर लोग उठकर निवृत्त होने या कुछ खाने-पीने जा रहे हैं. मेरे ब्लेडर मे भी पानी भर गया है, लेकिन मैं उठकर कही नहीं जाता, इस डर से कि कही मेरे लौटने से पहले फिल्म शुरू हो गई तो?? मैं एक फ्रेम भी मिस करना नहीं चाहता. कुछ मिनट बीत चुके हैं, फिल्म अब तक शुरू नहीं हुई है. मन मे आता है कि जाकर हल्का हो आऊँ, फिर लगा कि अब तो और कम टाइम बचा है. सीट और मैं एक दुसरे से चिपके हुए है. अब छिछोरे टाइप के दो अंकल लोग अपना पॉपकॉर्न और सॉफ्ट ड्रिंक हाथ मे लिए मेरे सामने वाली सीट पर आकर बैठ जाते हैं. एक बोलता है- मेने तो का ता सापित देकने चलते हें, जाने माकडा क्या दिका रिया हे- दूसरा अंकल कोई जवाब नहीं देता. फिल्म शुरू हो चुकी है...
... जब भी कोई फिल्म देख रहा होता हूँ, और किसी दूसरे  बन्दे का रिऐक्शन मेरे मन मुताबिक नहीं होता तो लगता है, बेवकूफ साला, कुछ नहीं आता जाता इसे...
 ...तो अब फिल्म ख़तम हो चुकी है. क्रेडिट टाईटल के साथ लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा बजने लगता है. सम-अप सॉन्ग का विजुअल देखकर पता चलता है कि फिल्म की एक फीमेल कैरेक्टर की ज़िन्दगी का इकलौता मकसद पूरा हो गया है, यानि नैरेटिव अब तक मौजूद है, वाह भई!!! मैं अपनी सीट से उठना नहीं चाहता, लेकिन मेरे आगे की सीट वाले लोग उठकर खड़े हो गए है. और उनके कारण  मुझे गाना दिखाई नहीं दे रहा है. मजबूरी मे मैं भी उठ के खड़ा हो जाता हूँ. अपने दोनों हाथ जींस की जेबों मे समेटे हुए मैं कुछ डिवाइन सा महसूस कर रहा हूँ. सोच रहा हूँ कि यदि अगला शो दिखाया जाने वाला होता तो दोबारा टिकट खरीदकर बैठ जाता, लेकिन अफ़सोस कि ये आज का लास्ट शो है. हॉल से बहार निकलकर, सीढियां उतरते हुए अपने आस-पास के लोगो के रिऐक्शन्स  सुनना चाहता हूँ. लेकिन मुझे सिर्फ शोर सुनाई दे रहा है, कोई बात ठीक से समझ नहीं आ रही. या फिर शायद मुझे सुनाई देना बंद हो गया है. पता नहीं. पार्किंग लाट पर पहुचकर बाइक स्टार्ट करता हूँ, आस-पास की हर आवाज़ गूंजती हुई सी लग रही है. पार्किंग लाट एकदम बंद-बंद सा है. बाइक लेकर मैं सड़क पर आ जाता हूँ. 
अब ऐसा लग रहा है जैसे किसी खुले मैदान मे आ गया हूँ. घर की तरफ चल देता हूँ, रात का सवा ग्यारह बज रहा है, सड़क करीब-करीब खाली है, कोई ट्रैफिक  नहीं. मेरे अन्दर का रोबोट ड्राइविंग कर रहा है और मैं बाइक चलाते हुए अब भी फिल्म देख रहा हूँ, लव, सेक्स और धोखा डार्लिंग लव, सेक्स और धोखा. डार्लिंग, डार्लिंग, डार्लिंग...