Saturday, August 31, 2013

छुअन

ये एक थकी हुई सुबह है, लेकिन तेज़ी से भागती हुई. मैं एक छोटी सी कार के अन्दर हूँ लेकिन अकेला नहीं हूँ, मेरे साथ कोई और भी है, जिसे मैं सिर्फ पिछले कुछ घंटों से जानता हूँ. सारी रात जागने के कारण उसे नींद आ रही है और अभी हमारे बीच इतना तकल्लुफ बाकी है कि मैं चाह कर भी उसे सोने से रोक नहीं सकता। हालाँकि उसने मेरी गोद में अपना सर रखा हुआ है, लेकिन फिर भी मैं उसे ये बता नहीं पाता कि उसकी ये छुअन मुझे कितनी खूबसूरत लग रही है. मैं उस से बात करना चाहता हूँ, उसे महसूस कराना चाहता हूँ कि अगर वो चाहे तो हम बहुत दूर तक साथ चल सकते हैं. लेकिन अभी मुझे अपनी इतनी सी हसरत भी नामुमकिन लग रही है।

एक दूसरे के बारे में अभी हम कुछ ख़ास नहीं जानते, शायद सारी समझदारियां यही कहेंगी कि भला इतनी जल्दी किसी के बारे में कोई फैसला कैसे लिया जा सकता है? और फिलहाल इस सवाल का कोई वाजिब जवाब भी नहीं है मेरे पास...

लेकिन इस वक्त, इस छोटी सी कार के अन्दर उसके सोते हुए चेहरे पर जो धूप पड़ रही है, उसकी चमक का मैं क्या करूं? अभी तो मैं बस एक कागज़ और थोड़े से रंग चाहता हूँ, ताकि इस धूप को उस कागज़ पर उतार दूं और खुद से कह सकूं कि देखो, कुछ तो हासिल कर लिया मैंने, भले ही वो बस एक अनगढ़ सी तस्वीर हो, जिसका मेरे अलावा किसी और के लिए कोई मोल न हो।

अभी मैं उसे ठीक से जानता नहीं हूँ, लेकिन जिस तरह से वो मेरी तरफ देखती है, जैसे मुस्कुराती है, ऐसा लगता है, जैसे अपना सब कुछ कह देना चाहती हो और मेरा सब कुछ सुन लेना चाहती हो...

मुझे नहीं मालूम कि पिछले 30-35 घंटो में उसने मुझसे कौन सी उम्मीदें बाँधी हैं, लेकिन मुझ पर वो जितना भरोसा कर रही है, जिस तरह मुझे अपने करीब आने दे रही है, उससे खुद पर मेरा यकीन बढ़ता जा रहा है और लग रहा है कि शायद अब भी मेरे पास बहुत कुछ है किसी को देने के लिए.
हमारी गाडी सड़क किनारे के एक ढाबे पर रुकी हुई है. हम दोनों चाय पीते हुए बातें कर रहे हैं. हर दो चार पलों में हमारी बातें एक दूसरे को, खुद के बारे में कुछ बताने पर लौट आती हैं. हम थोडा-थोडा करके एक दूसरे को जान रहे हैं... साथ साथ आगे बढ़ रहे हैं.

मैं उसके काफी करीब आ गया हूँ. गाडी की पिछली सीट पर हम सिर्फ एक दूसरे के साथ हैं. सच कहूं तो इस वक़्त मैं उसे चूमना चाहता हूँ. और ये भी चाहता हूँ कि चूमते वक़्त वो अपनी आखें बंद न करे, ताकि हम एक दूसरे को देख सकें, ज्यादा से ज्यादा महसूस कर सकें.

पर मैं ऐसा कुछ नहीं करता, पता नहीं वो अभी इसके लिए तैयार है या नहीं.

मैं उसका हाथ अपने हाथ में लेता हूँ. मैं चाहता हूँ कि सब कुछ यहीं रुक जाए, क्यूंकि अब वो जिस तरह वो मुझे देख रही है, लगता है जैसे हमारे लिए एक-दूसरे में डूब कर ख़त्म होना मुमकिन है.. इससे ज्यादा किसी को और क्या चाहिए? 

पर मैं यहीं नहीं रुकता, थोडा और आगे बढ़ता हूँ, उसके कंधे और गले को छूकर शरारत से पूछता हूँ, "ये क्या है?" वो मुस्कुराते हुए जवाब देती है "गला". मैं ज़रा और आगे बढ़ता हूँ और अपना हाथ उसके सीने के करीब ले जाकर धीरे से पूछता हूँ "और ये?"

अचानक वो कुछ और हो जाती है. उसका डिफेंस मैकेनिज्म बीच में आ जाता है. अचानक हमारे बीच लड़का-लड़की होने का फर्क आ जाता है. ये सब मुझे और आगे बढ़ने से रोक देता है. हम कुछ पल एक दूसरे की तरफ देखते हैं और फिर कहीं और, कुछ और देखने लगते हैं.

अब हम वो ढाबा छोड़ चुके हैं और हमारी गाडी airport की तरफ बढ़ रही है. थोड़ी देर पहले जो भी हुआ, शायद उसी के कारण अब हम और खुल कर बातें कर रहे हैं. उसे अब भी नींद आ रही है, लेकिन वो कोशिश करके जाग रही है. शायद उसे मुझसे बातें करना अब और अच्छा लग रहा है. मैं वाकई बहुत खुश हूँ.

हम airport पहुँच चुके हैं और अब तक हमारे बीच का 'मैं-तुम' वाला फर्क खत्म हो चुका है, हम एक हो गए हैं.

उसकी flight एक-डेढ़ घंटे बाद है. हम खुश हैं कि एक दूसरे के लिए हमारे पास थोडा वक्त बाकी है, लेकिन तभी हमें बताया जाता है कि उसे अभी-के-अभी जाना होगा. इससे ज्यादा बुरा और कुछ नहीं हो सकता. लेकिन कोई और रास्ता भी नहीं है.

आखिर वो जाने के लिए आगे बढती है. मैं उसे देख रहा हूँ और तब तक देखना चाहता हूँ, जब तक वो ओझल न हो जाये. वो कई बार मुड़ कर मेरी तरफ देखती है, आखिर में, अंतिम मोड़ पर रुक कर मुस्कुराती है और मुझे जाने का इशारा करती है... मैं इनकार कर देता हूँ... उसे देखने का ये मौका गंवाना, मुझे किसी कीमत पर मंज़ूर नहीं. हारकर वो खुद ही मुडती है और आगे बढ़ जाती है.
वो जा चुकी है, अब मैं उसे देख नहीं सकता, लेकिन जाने क्यों लग रहा है यहीं रुक जाऊं. काश हम अलग-अलग शहरों में न रह रहे होते. काश हमारी जिंदगियां इतनी दूर-दूर न बसी होतीं... खैर, कुछ लम्हों के बाद मैं भी वापस मुड़ जाता हूँ.

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अगली बार मैंने उसे अपने शहर में देखा. वो यहाँ मुझसे मिलने आई हुई है, मैं उसे लेने station आया हूँ. वो मुझे दूर से दिखाई देती है. छोटी सी, बच्चों जैसी और ढेर सारे सामान के साथ. अचानक लगा जैसे वो भी बिलकुल मेरे जैसी है, पता नहीं क्यों, पर यही लगा. 

मैं तेज़ी से उसके करीब जा रहा हूँ, वो मुडती है और मुस्कुराना शुरू कर देती है. शायद उसने भी मुझे देख लिया है... पता नहीं मैं कैसा दिख रहा हूँ, पता नहीं वो क्या सोच रही होगी.
खैर... जैसे ही मैं उसके करीब पहुँचता हूँ, उठाकर गले लगा लेता हूँ... आह... कितना सुकून है इसमें.  

हम घर लौटते है और इस दौरान वो जिस तरह मेरी तरफ देख रही है, मैं बस फ़िदा हूँ उस पर.

काफी रात हो चुकी है. इस बीच हमने काफी बातें कीं… बहुत कुछ कहा, बाँटा.

मैं बिस्तर पर हूँ, वो मेरे पास आती है. हम एक दूसरे में सिमट जाते हैं और कुछ ही लम्हों बाद, वो मेरे और मैं उसके सबसे करीब होते हैं. दुनिया में इस से ज्यादा सच्चा कुछ नहीं है. अचानक उसने मेरे सारे बोझ बाँट लिए हैं.

जिस तरह उसने मुझे खुद में जगह दे दी है, लगता है जैसे अब उसके सारे सुख मेरी ज़िम्मेदारी हैं.
अगले ही पल वो मेरे कान में फुसफुसाती है, "मैं चीख भी नहीं सकती..."

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उसकी इस एक बात में, हम दोनों की सारी मजबूरियाँ छुपी हुई हैं. लेकिन मजबूरियाँ कहाँ नहीं होतीं? इसके पहले भी थीं, आगे भी रहेंगी. पर मैं उसके साथ रहना चाहता हूँ. हर वक़्त, हमेशा!

अब अगली बार जब भी वो मेरे सामने होगी, मैं उसकी आँखों में आखें डाल कर पूरी शिद्दत से उसे बताऊंगा कि वो मेरे लिए कितनी अहम है.

Wednesday, July 31, 2013

आखिरी झगडा

: भाड़ में जाओ तुम!
: अरे नाराज़ क्यूँ हो रहे हो, क्या गलत कहा मैंने?

: नहीं नहीं, तुम कभी कुछ गलत कहती हो? साला मैं ही चूतिया हूँ!
: Oh please!

: क्यूँ? हिंदी में गाली बड़ी cheap लग रही होगी... नहीं?
: ओफ़... क्या हो गया है तुम्हें? कितना judge करने लगे हो!

: मैं कितना judge करने लगा हूँ, ये भी एक judgement ही है... तुम्हारा judgement.
: इतनी बुरी लगने लगी हूँ, तो छोड़ क्यों नहीं देते?

: मैंने रोक के नहीं रखा है तुम्हें!
: हाँ ठीक है यार, ख़तम करो फिर!


: साफ़-साफ़ क्यों नहीं बोलतीं कि मन भर गया है तुम्हारा?
: हाँ, भर गया है मन! ठीक है? और कुछ बुलवाना चाहते हो मुझसे?

: नहीं बस यही सुनना चाहता था मैं.